UP सरकार ने कावड़ कॉरिडोर के लिए 1 लाख से ज्यादा पेड़ों को काटने की दी मंजूरी.. पढिए पूरी खबर

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: इंडियन गवर्नमेंट के पर्यावरण मंत्रालय ने 1 लाख से ज्यादा पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी है. किस बात के लिए? मामला है यूपी गवर्नमेंट की महत्त्वकांक्षी कांवड़ कॉरिडोर का. 111 किलोमीटर के इस गलियारे को लेकर योगी आदित्यनाथ की गवर्नमेंट बहुत पहले से तमाम तरह के अप्रूवल लेने में लगी हुई थी. अब जब इंडियन गवर्नमेंट से पेड़ों को काटने की इजाजत मिल गई है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि गलियारे का काम फरवरी महीने में शुरू हो सकता है.

 

जिन पेड़ों की कटाई की जाने वाली है, उनमें 25 हजार के करीब पौधे गाजियाबाद, 67 हजार के लगभग मेरठ और 17 हजार के तकरीबन मुजफ्फरनगर में फैले हैं. कुछ खबरों में काटे और उखाड़े जाने वाले पेड़ों का आंकड़ा 1 लाख 10 हजार से भी ज्यादा बताया जा रहा है. यूपी के पीडब्ल्यू डिपार्टमेंट को हालांकि इन पेड़ों को उखाड़ने या काटने से पहले तकरीवन 50-50 लाख रूपये मेरठ, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद के फॉरेस्ट डिविजन में जमा करना पड़ेगा. यह पैसा काटे गए पेड़ों की जगह जरूरी पौधा रोपड़ की मकसद से जमा किए जाने वाले है.

 

 

केंद्र सरकार ने तब जाकर दी मंजूरी: खबरों का कहना है कि पर्यावरण को लेकर जो कानून हैं, उसके अनुसार अगर किसी परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई की जा रही है तो संबंधित विभाग या एजेंसी को कहीं और पेड़ लगाने के लिए जमीन की व्यवस्था करना पड़ जाती है. यूपी गवर्नमेंट का PWD यानी लोक निर्माण विभाग इस पूरी परियोजना को धरातल पर उतारने में जुटा है. बीते वर्ष जब PWD विभाग ने ललितपुर जिले में तकरीबन 222 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की पहचान कर ली जहां काटे गए पेड़ों के वास्ते जरूरी पौधा रोपण किया जाने वाला है, तब जाकर परियोजना को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से रफ्ता-रफ्ता मंजूरी मिलनी शुरू हुई.

 

क्या बदल जाएगा, सरकार का दावा: इतना ही नहीं यह गलियारा मुजफ्फरनगर के पुरकाजी को गाजियाबाद के मुरादनगर के साथ जोड़ने वाला है. दो लेन वाला यह कांवड़ कॉरिडोर मेरठ के सरधना और जानी के इलाकों से होकर गुजरने वाला है. पूरा रास्ता ऊपरी गंगा नहर को लग कर जाएगा. प्रश्न है कि इस गलियारे से फर्क क्या पड़ सकता है? दरअसल अभी सूरत-ए-हाल ये है कि जो कांवड़ यात्री हैं, वे दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस और मेरठ के पुराने हाइवे का उपयोग करते हैं. यूपी गवर्नमेंट की ये चाह है कि वह इस कॉरिडोर के माध्यम से एक वैकल्पिक रास्ता कांवड़ यात्रियों को मुहैया कराए ताकि इससे रूट का बोझ कुछ कम हो. सरकार का तो इस बारें में बोलना है कि इससे न सिर्फ कांवड़ यात्रा सुगम हो जाएगी बल्कि जो पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान हैं, उन्हें भी मंडी औऱ मिलों तक पहुंचने का एक और रास्ता मिल सकता है.

 

काम शुरू होने में हुई देरी?: कुछ रिपोर्ट्स में तो ये भी कहा गया है कि 2018 की इस परियोजना को तकरीबन 2 बरस लग गए तब जाकर प्रदेश गवर्नमेंट की ओर से इसके लिए 2020 में 628 करोड़ रूपये के फंड की अनुमति दी गई. बावजूद इसके यह प्रोजक्ट पर्यावरण और वन मंत्रालय की मंजूरी न मिल पाने की वजह से लटकी रही. सरकार की दलील यह रही कि उन्हें पौधा रोपड़ के लिए जमीन जल्दी से नहीं मिल सकी, इस वजह से प्रोजेक्ट में देरी हुई. क्योंकि इस परियोजना के एलान को कुल मिलाकर 6 बरस अब होने को है मगर काम अब तक कुछ ठोस कार्य को शुरू नहीं कर सका. महज फाइलें आगे-पीछे हो रही हैं. 2023 के जून महीने में गवर्नमेंट के एक अधिकारी का बयान है, जहां उन्होंने उम्मीद जताई थी कि 2024 में इस परियोजना को पूरा कर लिया जाने वाला है. मगर हकीकत ये है कि 2024 में भी अभी काम शुरू होने ही की बात हो रही. अब कहा जा रहा है कि यह परियोजना 18 माह में पूरी कर ली जाएगी.

 

कांवड़ यात्रा: एक नजर: प्रत्येक वर्ष श्रावण यानी सावन महीने में कांवड़ यात्रा निकाली जाती है. मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि 2019 में तकरीबन साढ़े 3 करोड़ कांवड़ियों ने हरिद्वार की यात्रा की थी जबकि 2 से 3 करोड़ ऐसे श्रद्धालु रहे जिन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में मौजूद अलग-अलग तीर्थस्थलों की यात्रा कांवड़ लेकर की थी. इस यात्रा के बीच शिव भक्तों की पहली इच्छा होती है कि वे कांवड़ लेकर बाबा औघड़नाथ मंदिर, पुरा महादेव मंदिर, दुधेश्वर नाथ मंदिर, लोधेश्वर महादेव मंदिर, काशीरेश्वर महादेव मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और बैद्यनाथ धाम मंदिर जैसी प्राचीन मंदिरों में जल चढ़ाएं और माथा टेके. अगर किसी कारण वह यहां नहीं जा पाते तो नजदीकी शिव मंदिर में गंगा जल चढ़ाने और दर्शन करने के लिए चुनते हैं. अब ये भी कहा जा रहा है कि यूपी के मेरठ, गाजियाबाद और मुजफ्फरनगर के रास्ते कांवड़ यात्रा पर जाने वालों को इस कॉरिडोर का लाभ होने वाला है.

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