तालिबान के असली रूप पर भारत की पैनी नजर 

विदेश

   तालिबान को मान्यता देने को लेकर भारत अपना रुख स्पष्ट करने की हड़बड़ी में नहीं है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अब तक तालिबान ने वहां भारतीय नागरिकों और हिंदू-सिख अल्पसंख्यकों को निशाना नहीं बनाया है। लेकिन विदेशी सैनिकों के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब तालिबान जल्द ही सरकार का गठन करेगा और तब कई मुद्दों पर उसका असली रुख स्पष्ट होगा। इसलिए भारत इस मामले में और इंतजार करने के मूड में है। इसमें यह भी देखा जाएगा कि नई सरकार में पूरी तरह तालिबान की अकेली सत्ता होगी या अन्य अफगान नेताओं को भी इसमें जगह दी जाएगी।
     अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की तय समय से एक दिन पहले ही विदाई के बाद बने हालात पर भारत का उच्च स्तरीय समूह करीबी नजर रख रहा है। फिलहाल अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों और अफगान सिख-हिंदू अल्पसंख्यकों को निकालने की प्राथमिकता तय की गई है। साथ ही वहां की धरती के आतंकी उपयोग को लेकर भी नजर रखी जाएगी।
     प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और कुछ आला अधिकारियों का उच्च स्तरीय समूह गठित किया था। यह समूह इसके बाद से अफगानिस्तान की तेजी से बदल रही परिस्थितियों पर रोजाना बैठक कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि पीएम मोदी ने समूह को पहले अफगानिस्तान में भारत की तात्कालिक प्राथमिकता तय कर उन पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है। इनमें सबसे ऊपर अफगानिस्तान में अब भी रह गए भारतीय नागरिक और भारतीय मूल के अफगान सिख व हिंदू अल्पसंख्यकों को वहां से निकालना है।
      सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अफगानिस्तान में करीब दो दर्जन भारतीय और सौ के आसपास सिख-हिंदू अल्पसंख्यकों के अब भी फंसे होने का अनुमान है। इन्हें बाहर निकालने के लिए भारत बैकडोर चैनल का इस्तेमाल कर रहा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल 300 अमेरिकी और करीब सौ की संख्या में ब्रिटिश नागरिक अब भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं। ये दोनों देश अपने नागरिकों को बाहर निकालने के लिए राजनयिक अभियान का सहारा ले रहे हैं। भारत भी अब ऐसा ही करने जा रहा है और इन दोनों देशों के भी लगातार संपर्क में है।
      इसके अलावा भारत रूस, कजाकिस्तान, ईरान समेत सभी क्षेत्रीय शक्तियों के भी कूटनीतिक संपर्क में है ताकि अफगानिस्तान की धरती का अपने खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने में उपयोग रोक सके। जमीनी हालात के साथ ही उच्च स्तरीय समूह अफगानिस्तान को लेकर होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर भी नजर रख रहा है। इनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) भी शामिल है, जहां भारत की अध्यक्षता में ही सोमवार को अफगानिस्तान को आतंक का गढ़ बनने से रोकने का प्रस्ताव मंजूर किया गया है।

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