विश्वयुद्ध से इतर ईरान—अमेरिका के बीच सायबर युद्ध का खतरा!

संपादकीय

साल की शुरुआत में जब अमेरिकी ड्रोन ने ईरान के सेना प्रमुख कासिम सुलेमानी पर निशाना साधा था, तब ये दोनों ही देश दो अलग-अलग मानसिकता में पहुंच गए थे। अच्छी बात यह है कि मामला अब शांति की ओर बढ़ता दिख रहा है। ईरान में उन्माद था और हर ओर बदला लेने की शब्दावली सुनाई दे रही थी। दूसरी ओर, अमेरिका के रक्षा विशेषज्ञों में एक नए किस्म का डर था। हालांकि वे आश्वस्त थे कि सैनिक ताकत में ईरान उनके सामने कहीं नहीं ठहरेगा।

ईरान के पास परमाणु बम है, ऐसा पक्के तौर पर कोई नहीं कह रहा है, और यदि है भी, तो वह अमेरिका की ताकत के आगे कहीं नहीं ठहर सकेगा। अमेरिकी विशेषज्ञों का डर दरअसल कुछ दूसरा था। उनकी चिंता यह थी कि अगर ईरान ने साइबर हमले का रास्ता अपनाया, तब क्या होगा? यह डर बेवजह नहीं था। दोनों देशों के बीच साइबर युद्ध पहले से ही जारी है। इसकी पहल भी अमेरिका की तरफ से ही हुई थी। खुद अमेरिका के ही साइबर विशेषज्ञों का दावा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम में खलल डालने के लिए अमेरिका ने बाकायदा एक वायरस तैयार करके ईरान के सुरक्षा सर्वर तक पहुंचाया था। यह भी कहा जाता है कि ईरान ने अपनी तरह से इसका जवाब देने की कोशिश भी की थी। साल 2018 में ईरान के साइबर हमले ने अटलांटा और जॉर्जिया की सरकारों को काफी परेशान कर दिया था। इसलिए डर यही था कि इस बार कार्रवाई ज्यादा बड़ी हो सकती है।

हालांकि जिस तरह की चिंताएं पूरे अमेरिका में दिखीं, उसने यह तो स्पष्ट कर ही दिया कि साइबर नेटवर्क अमेरिका की सबसे कमजोर नस बन चुका है। किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा चिंता वहां इस समय साइबर सुरक्षा की है। युद्ध के मैदान में प्रशिक्षित सेनाएं एक-दूसरे से लड़ती हैं, लेकिन साइबर युद्ध में खतरा यह रहता है कि निशाना नागरिक जीवन को बनाया जाएगा। सैन्य संस्थाओं के सर्वर को सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त सावधानियां पहले ही बरती जाती हैं, लेकिन नागरिक सेवाओं के साथ ऐसा नहीं होता। इन दिनों अमेरिका में जो चर्चा चल रही है, उसमें दो सेवाओं का जिक्र खासतौर पर किया जा रहा है। ये हैं- जल शोधन संयंत्र और पावर ग्रिड। पहले पर साइबर हमले से आम लोगों को पानी की आपूर्ति से वंचित किया जा सकता है, तो दूसरे से विद्युत सप्लाई रोकी जा सकती है। कहीं के भी जनजीवन को अस्त-व्यस्त करने के लिए इतना ही काफी है। अमेरिका की गिनती दुनिया के उन देशों में होती है, जहां की ज्यादातर सार्वजनिक सेवाएं इंटरनेट आधारित हो चुकी हैं। अमेरिका को पता है कि वह साइबर हमला करके ईरान को उतना बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जितना कि ईरान उसे पहुंचा सकता है।
यह बताता है कि हमले भले ही अभी भी बमों और मिसाइलों से ही हो रहे हों, लेकिन नई दुनिया के डर बदल गए हैं। पहले सुरक्षा की दृष्टि से जब महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात होती थी, तो पुलों, राजमार्गों, हवाई अड्डों और रेल लाइनों की बात होती थी। अब उन सर्वरों की बात होती है, जिनसे सामान्य जनजीवन चलता ही नहीं, बल्कि उन पर पूरी तरह निर्भर भी होता है। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि अगर इस बार विश्वयुद्ध हुआ, तो वह साइबर युद्ध ही होगा। इंटरनेट ने हमारी सभ्यता को बहुत कुछ दिया है, साइबर युद्ध यह सब छीन सकता है।

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