मुहाने पर तीसरा विश्वयुद्ध!

संपादकीय

अमेरिका ने एक झटके में पश्चिम एशिया को युद्ध की ओर धकेल दिया है। किसी भी तरह का सैनिक संघर्ष अगर हुआ, तो बात सिर्फ अमेरिका और ईरान तक सीमित नहीं रहेगी, इसका ताप पूरी दुनिया को ही कई दाग देगा। किसी देश के सैन्य प्रमुख को हमला करके मार देने का अर्थ सिर्फ एक ही होता है, उस देश के खिलाफ युद्ध का एलान। जैसे ही यह खबर आई कि अमेरिकी ड्रोन ने इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर के प्रमुख कासिम सुलेमानी को इराक के बगदाद हवाई अड्डे के पास मार गिराया, विश्व बाजार में पेट्रोलियम के भाव एकाएक बढ़ गए। इस हमले में इराकी मिलीशिया के कमांडर अबू मेंहदी समेत सात और लोग मारे गए हैं। जाहिर है, यह मामला सिर्फ ईरान और अमेरिका तक सीमित नहीं है, इराक भी इस हमले के लपेटे में आ गया है। हमला जिस तरह से अचानक हुआ, उसने पश्चिम एशिया को ही नहीं, पूरी दुनिया को, यहां तक कि खुद अमेरिका के लोगों को भी चौंका दिया। ईरान और अमेरिका के बीच तनाव पिछले काफी समय से बढ़ रहा था, यह भी लग रहा था कि वे दोनों सीधे टकराव की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि संघर्ष की इतनी आक्रामक पहल अमेरिका की ओर से होगी। ईरान के लिए कासिम सुलेमानी का क्या महत्व है, इसे इससे समझा जा सकता है कि वह सिर्फ वहां की सेना के प्रमुख ही नहीं थे, माना जाता है कि वह वहां के धार्मिक नेता आयतुल्लाह खामेनेई के बाद वहां के सबसे लोकप्रिय शख्स भी थे। जाहिर है, ईरान भी इस हमले को हल्के में नहीं ले सकता, उसने भी बदला लेने की धमकी दे दी है।
तनाव इतना ज्यादा है कि कुछ विश्लेषक यहां तक कह रहे हैं कि यह आग दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा सकती है। उम्मीद करनी चाहिए कि मामला इतना नहीं बढे़गा और इस तनाव में पूरी दुनिया के देश शामिल नहीं होंगे। लेकिन यह भी सच है कि शायद ही दुनिया का कोई ऐसा देश होगा, जो इस तनाव की मार से बच पाएगा। फारस की खाड़ी में जब भी तनाव हुआ है, तो तेल के दाम आसमान पर पहुंचे हैं। इस समय संकट यह भी है कि पूरी दुनिया मंदी से त्रस्त है और तेल के दामों में होने वाली कोई भी बढ़ोतरी सभी लोगों और देशों के कष्टों को बहुत ज्यादा बढ़ा सकती है।
लेकिन यह भविष्य की बात है। फिलहाल तो पूरी दुनिया इस सवाल से जूझ रही है कि अमेरिका के लिए अचानक ऐसी कार्रवाई की क्या जरूरत आन पड़ी थी। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से ईरान और अमेरिका जिस तरह से उलझे हैं, उसमें किसी भी अनहोनी के होने की आशंका हमेशा से ही मंडरा रही थी। इस हमले के बाद एक और महत्वपूर्ण चीज यह हुई है कि अमेरिका ने न सिर्फ कार्रवाई की बात स्वीकार की है, बल्कि यह भी कहा कि यह कदम राष्ट्रपति ट्रंप के निर्देश पर उठाया गया है। सरकार की ओर से हमले का सेहरा ट्रंप के सिर पर बांधने के कारण बहुत से लोग इसे अमेरिका में इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से भी जोड़कर देख रहे हैं। धारणा यह है कि ट्रंप इस चुनाव को अमेरिकी राष्ट्रवाद की लहर पैदा करके जीत लेना चाहते हैं। सच जो भी हो, यह साफ दिख रहा है कि अमेरिका ने जो कार्रवाई की उसकी कोई जरूरत कहीं से भी नहीं थी, इतनी आक्रामक पहल से आसानी से बचा जा सकता था।

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