UAE में वर्ल्ड मुस्लिम कम्युनिटीज़ काउंसिल के चौथे वार्षिक सम्मेलन का आयोजन

विदेश

दुबई: संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में वर्ल्ड मुस्लिम कम्युनिटीज़ काउंसिल (TWMCC) के चौथे वार्षिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस बैठक में 150 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि पहुंचे थे। इस सम्मेलन में इस्लामिक दुनिया की एकता को लेकर विचार-विमर्श किया गया, जिसमें मुस्लिम मुल्कों के 500 से ज्यादा धार्मिक, सियासी विद्वान और समाजिक नेता शामिल हुए। इस बैठक की थीम- इस्लामिक एकता की अवधारणा, अवसर और चुनौतियाँ थी।

 

इसका आयोजन UAE के सहिष्णुता और सह-अस्तित्व मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक अल नाह्यान के नेतृत्व में किया गया। ये TWMCC की ये चौथी वर्षगाँठ थी। मीटिंग का आयोजन आठ और नौ मई को अबू धाबी राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र में हुआ। इस दौरान सहिष्णुता मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक ने कहा कि मुस्लिम दुनिया का आधार विज्ञान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि, 'मैं विशेषज्ञ नहीं हूँ, मगर इस्लाम विज्ञान और ज्ञान का मजहब है। इसलिए ये आवशयक है कि विज्ञान और शोध मुस्लिम एकता की बुनियाद बने।' इस दौरान मिस्र के धार्मिक मामलों से संबंधित मंत्री डॉक्टर मोहम्मद मुख़्तार गोमा ने इस बात पर बल दिया कि मुस्लिम दुनिया दो श्रेणियों में विभाजित है। एक दुनिया तार्किक है, जबकि दूसरी काल्पनिक जिसका चरमपंथी और आतंकवादी गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।

 

 

 

विशेषज्ञों ने दलील दी कि देशभक्ति और अपने देश के प्रति वफादारी मुस्लिमों को एक झंडे के नीचे एक ‘खिलाफत’ में एकजुट करने की अवधारणा को तोड़ देना चाहिए, जैसा कि विस्तारवादी, अति-हिंसक आतंकी समूह ISIS बनाने की माँग कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टर मोहम्मद मोख़्तार गोमा ने कहा कि, 'एक मुस्लिम दुनिया की अवधारणा पर दो विचार हो सकते हैं। पहला तार्किक, जिसका प्रतिनिधित्व इस कांफ्रेंस के जरिए किया जा रहा है और दूसरा असंभव और काल्पनिक, जिसका गलत इस्तेमाल चरमपंथियों और आतंकवादी संगठन कर रहे हैं, जिनका मक़सद पूरी मुस्लिम दुनिया को एक झंडे और एक देश के भीतर लाना है।'

 

उन्होंने आगे कहा कि, 'आज के दौर में, एक नवनिर्मित देश के अंदर असंभव एकता की कामना करने से अधिक अपने राष्ट्र, उसकी धरती और झंडे के प्रति वफ़ादार होना आवश्यक है। ये प्रयास एक राष्ट्र और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच रह रहे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को कमज़ोर करने के लिए किया जा रहा है।' उन्होंने कहा कि, ये भी आवश्यक है कि क़ुरान की आयतों को उसके उसी संदर्भ में समझा जाए, जैसे उन्हें लिखा गया है न कि जिस प्रकार आतंकी संगठन अपने हित साधने के लिए उसका उपयोग कर रहे हैं। मोहम्मद मोख़्तार ने कहा कि, एक मुस्लिम को उस देश का सम्मान करना चाहिए, जहाँ वह रहता है, फिर चाहे वो देश मुस्लिम बहुल या वहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों। इसके अलावा फ़तवा, हालात, जगह और वक़्त के हिसाब से बदलना चाहिए। वैश्विक फोरम पर हमें समन्वय के माध्यम से इस्लामिक एकता दिखानी चाहिए। जो भी क़ुरान जला रहे हैं, उनका सामना हम मजबूती से करेंगे। हमारे मजहब का लोग तब तक सम्मान नहीं करेंगे, जब तक हम अपने जीवन में कामयाब नहीं होंगे। हमें उन अतिवादियों से भी लड़ना होगा जो इस्लाम का गलत तरीके से उपयोग करते हैं। यह असंभव है कि तमाम देशों के मुस्लिम एक झंडे, एक देश और शासक के अधीन हों।

 

इसके साथ ही उन्होंने ईशनिंदा के अपराधीकरण पर फोकस करने पर जोर दिया और साथ में चरमपंथी और आतंकी गुटों के खिलाफ एकजुट होने का भी आग्रह किया। उन्होंने इस्लाम के विद्वानों और विशेषज्ञों से अपील की कि वे इन चरमपंथी संगठनों की हकीकत सबके सामने लाएँ। उन्होंने ये भी कहा कि जगह और वक़्त के मुताबिक ही फतवे जारी किए जाने चाहिए। वहीं इस काउंसिल के सेक्रेटरी जनरल मोहम्मद बेचारी ने कहा कि, इस्लामी दुनिया कई हिस्सों में विभाजित है और इन दूरियों को पाटने की आवश्यकता है।

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