सुप्रीम कोर्ट ने बंद के दौरान पूर्ण वेतन संबंधी सर्कुलर पर रोक लगाई

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूरे भारत में प्रशासन को आदेश दिया कि वे उन नियोक्ताओं के खिलाफ मुकदमा न चलाएं, जो कोविड-19 के कारण राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान कामगारों को पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करने में असमर्थ हैं। शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद अब गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को जारी निर्देश पर रोक लग गई है, जिसमें विभिन्न फैक्ट्री मालिकों को कहा गया था कि वे बंद के दौरान कामगारों के वेतन में कटौती न करें।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ ने केंद्र और राज्यों से वेतन का भुगतान न कर पाने पर निजी कंपनियों, कारखानों आदि के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने को कहा।

शीर्ष अदालत ने औद्योगिक इकाइयों द्वारा दायर याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा है। औद्योगिक इकाइयां यह दावा करते हुए अदालत चली गईं कि उनके पास भुगतान करने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि उत्पादन ठप पड़ा हुआ है।

याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत के समक्ष कहा कि कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर लागू राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के दौरान संगठनों को उनके कार्यबल को भुगतान करने से पूरी तरह से छूट दी जानी चाहिए।

याचिका मुंबई के एक कपड़ा फर्म और 41 छोटे पैमाने के संगठनों के एक पंजाब आधारित समूह द्वारा दायर की गई थी। याचिका में गृह मंत्रालय के 29 मार्च के आदेश को रद्द करने मांग की गई, जिसमें मंत्रालय ने राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान निजी प्रतिष्ठानों को पूर्ण वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 10 (2) (आई) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

पंजाब स्थित लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन ने दावा किया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत 29 मार्च को दिया गृह मंत्रालय का आदेश, संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी), 265 और 300 का उल्लंघन है, जिसे वापस लिया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एम में प्राकृतिक आपदा के कारण छंटनी का अधिकार प्रदान किया गया है।

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