फिर हिन्दू विरोधी हुए दिग्विजय...!

संपादकीय

हिन्दू विरोध के लिए अक्सर विवादित बयानों में रहने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने फिर एक बार हिन्दुओं और उनकी आस्था को तार—तार करने वाला बयान दिया है, यही नहीं उन्होने इसके लिए स्वयं को सनातनी और सनातन धर्म को पाक—साफ भी बताने से गुरेज नहीं किया। इस बार खुद साधू संतों के सामने ही उन्होने बड़ी बेशर्मी से कहा, ''लोग भगवा कपड़े पहन कर और मंदिर में बलात्कार कर रहे हैं''। यदि वे इसका उदाहरण सहित व्याख्या करते तो भी समझ आता, लेकिन दिग्विजय ने तो समस्त भगवाधारियों को ही व्यापक अर्थ में बलात्कारी बता दिया और मंदिरों को भी लपेटे में ले लिया। यानि की सभी मंदिरों में भगवान की पूजा, आरती और भजन—कीर्तन की जगह बलात्कार ही होता है। भई वाह! दिग्विजय सिंह तो गजब करामाती निकले। उन्होंने बलात्कारियों का 'ड्रेस कोड' तक तय कर दिया। कहा कि लोग भगवा कपड़े पहनकर रेप कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने मंदिरों को बलात्कार वाली जगह भी बता दिया है। इस वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने यह बयान बेहद पेशेवर शातिराना तरीके से और षड़यंत्रपूर्वक दिया है। यह बात उन तथाकथित साधु-संतों के सामने कही गयी, जिन्हें आज टीवी चैनलों पर देखकर साफ समझ आ रहा था कि वे वहां धर्म नहीं, बल्कि सत्ता से समागम के लालच में पहुंचे हैं। उनमें से अधिकांश ने भगवा वस्त्र ही धारण कर रखे थे। समाज को दिखाने के लिए ही सही, अधिकांश नियम से मंदिर भी जाते ही होंगे। किंतु किसी ने भी दिग्विजय के कथन का विरोध नहीं किया। जब धर्म, पहनावे एवं धार्मिक स्थल के प्रति कोई श्रद्धा ही नहीं है, तो फिर विरोध भी कैसा।
बहरहाल, दिग्विजय ने यह बात इसलिए कही ताकि कम से कम मध्यप्रदेश में साधु-संतों की एक लंपट फौज को कांग्रेस के पक्ष में खड़ा कर भाजपा के धार्मिक आधार को कुछ कमजोर किया जा सके। साथ ही उनकी यह कोशिश भी है कि इस बयान के द्वारा हिंदू समाज को दो-फाड़ कर भाजपा के हिंदुत्व को डैमेज किया जाए। प्रतिशत के आधार पर हिंदू समाज ही वह वर्ग है, जिसमें अपने ही धर्म को कोसने तथा धार्मिक मान्यताओं का उपहास करने वालों की सर्वाधिक तादाद है। इसलिए यह तय है कि दिग्विजय के इस कथन की जहां भारी आलोचना होगी, वहीं भगवा तथा मंदिर वाले धर्म के ही कई लोग उनके पक्ष में भी खड़े नजर आ जाएंगे। यह तथ्य किसी से नहीं छिपा है कि सन 1992 के कुछ समय पूर्व से हिंदू समाज की एकजुटता ने भाजपा को सर्वाधिक ताकत प्रदान की है। इसमें साधुओं का भी सहयोग रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने इन दो बातों को ध्यान में रखकर ही यह बात कही है। हां, खुद को बचाए रखने की खातिर उन्होंने सनातन धर्म की तारीफ कर दी। ताकि मामला बिगड़े तो यह कहकर बात संभाली जा सके कि मामला धर्म के अपमान का नहीं था। मामला गलत फितरत के विरोध वाला ही था।
अब फितरत खराब ही हो तो आदमी निष्पक्ष नहीं रह जाता। इसलिए दिग्विजय के श्रीमुख से यह कथन बाहर नहीं निकल सका कि भोपाल के एक मदरसे में एक दिन पहले ही बच्चों को जानवरों की तरह चेन से बांधकर रखने का मामला सामने आया है। जहां उनके सााथ नियम से मारपीट होती है। उन्हें भूखा रखा जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री की स्मृति बहुत तीक्ष्ण है। किंतु मुझे पूरा यकीन है कि इससे वह यह तथ्य बलात डिलीट कर चुके होंगे कि कठुआ कांड सामने आने के कुछ दिन बाद ही दिल्ली से लगे एक मदरसे में एक हिंदू बच्ची के साथ ज्यादती का मामला सामने आया था। दिमाग की चिप से ऐसे हिस्से डिलीट कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। इसके लिए अपनी सोच और व्यवहार का एक एजेंडा तय करना होता है। जो दिग्विजय सिंह बनकर ही किया जा सकता है। ऐसा करना भी आसान नहीं है। इसके लिए खुद को कई हद तक नीचे गिराना होता है। यह गिरावट स्वाभाविक आ सकती है या सतत उपेक्षा तथा पराजय की खीझ से भी पैदा हो जाती है। ऐसा होने में कुंठा का भाव भी अहम भूमिका निभाता है। दिग्विजय के साथ इनमें से कौन सा फैक्टर काम कर रहा है, इसकी खोज करने में कम से कम मेरी तो कोई रुचि नहीं रह गयी है।

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