• भारत विरोधी तत्वों का नया अड्डा

    संपादकीय

    भारत में आत्मघाती हमले की तैयारी कर रहे इस्लामिक स्टेट के एक आतंकी का रूस में पकड़ा जाना खतरे की एक नई घंटी है। यह शायद पहली बार है, जब कोई आतंकी रूस के रास्ते भारत आकर आतंकवादी हमले को अंजाम देने की फिराक में था। रूस से प्राप्त जानकारी के अनुसार पकड़ा गया आतंकी मध्य एशिया का है और उसने तुर्किये में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसका मतलब है कि तुर्किये आतंकियों के प्रशिक्षण का अड्डा बना हुआ है। ध्यान रहे कि राष्ट्रपति एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद से तुर्किये में चरमपंथ बढ़ा है।

    एक समय था,...

  • सीधी भर्ती भी सही

    संपादकीय

    निस्संदेह 21वीं सदी के भारत में वैश्विक मानकों के अनुरूप शिक्षा व प्रशासनिक व्यवस्था में विशेषज्ञों की दरकार है, जो आधी सदी पुरानी औपचारिक पात्रता के मापदंडों से मुक्त हों। लेकिन इसके साथ यह भी जरूरी है कि नई व्यवस्था धनबल, राजनीतिक प्रभाव व अन्य किसी दबाव से प्रभावित न हो। यह जानते हुए कि देश में बड़ी आर्थिक विषमता है और सदियों से वंचित समाज को संविधान ने आगे बढ़ने के लिये विशेष अवसर दिये हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि संवैधानिक मापदंडों के अनुरूप कानून सम्मत रोजगार चयन प्रक्रिया में चतुर-चालाक व धनबल के उपासक...

  • बच्चों में किताबों के प्रति कम होता सम्मोहन

    संपादकीय

    सोशल मीडिया के कोलाहल के बीच नई पीढ़ी के बच्चों में किताबों के प्रति कम होता सम्मोहन गंभीर चिंता का विषय है। ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूली पाठ्यक्रम की पुस्तकों तक सीमित होते चले गये हैं। बस्ते का बोझ उन्हें विभिन्न विषयों की पुस्तकें पढ़ने का अवसर कम देता है। वहीं शिक्षकों ने भी यह जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई कि वे नयी पीढ़ी को विषय से अतिरिक्त पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकें। विडंबना यह भी कि समाज के संपन्न तबके व नीति-नियंताओं की संतानें महंगे पब्लिक स्कूलों की ओर उन्मुख हो गईं। वहां यदि पुस्तकों का...

  • महिला दिवस: फिल्म 'अनसुनी आवाजें'

    संपादकीय

    घरेलू कामगार यूनियन ने घरेलू कामगारों के जीवन एवं काम की परिस्थितियों पर बनी फि़ल्म ‘अनसुनी आवाज़ें’ दिल्ली की शानदार और चमचमाती कोठियों में बसनेवालों की ज़िन्दगी आसान बनानेवालों की कहानी कहती है। फि़ल्म बताती है कि देश की एक बड़ी आबादी दिल्ली जैसे महानगरों में अपनी मेहनत को कौड़ियों के मोल बेचने को मजबूर है और गुमनामी में जी रही है। फि़ल्म यह भी बताती है कि घरेलू कामगारों की यह आबादी 10 घण्टे खटने के बाद भी मज़दूर का दर्जा पाने से वंचित है। ऐसा इसलिए है कि इनके लिए अभी तक कोई क़ानून नहीं है। फि़ल्म इस...

  • र​हने लायक देशों में भारत की स्थिति हुई बेहतर

    संपादकीय

    यह सोचकर थोड़ा संतोष किया जा सकता है कि दुनियाभर में रहने लायक सबसे अच्छे मुल्कों की सूची में हमारी स्थिति थोड़ी सुधरी है, लेकिन महिलाओं की हैसियत और बच्चों के लालन-पालन के मामले में दुनिया की राय हमारे बारे में आज भी बेहतर नहीं है। यूएस न्यूज, वर्ल्ड रिपोर्ट और वॉर्टन स्कूल द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया में रहने लायक 73 देशों की सूची में भारत 25वें स्थान पर है जबकि पिछले साल हमें 27वीं रैंक मिली थी। यह रैंकिंग विभिन्न देशों को लेकर विश्वस्तर पर बनी धारणा के आधार पर की जाती है। व्यापार, निवेश, पर्यटन...

  • विश्वयुद्ध से इतर ईरान—अमेरिका के बीच सायबर युद्ध का खतरा!

    संपादकीय

    साल की शुरुआत में जब अमेरिकी ड्रोन ने ईरान के सेना प्रमुख कासिम सुलेमानी पर निशाना साधा था, तब ये दोनों ही देश दो अलग-अलग मानसिकता में पहुंच गए थे। अच्छी बात यह है कि मामला अब शांति की ओर बढ़ता दिख रहा है। ईरान में उन्माद था और हर ओर बदला लेने की शब्दावली सुनाई दे रही थी। दूसरी ओर, अमेरिका के रक्षा विशेषज्ञों में एक नए किस्म का डर था। हालांकि वे आश्वस्त थे कि सैनिक ताकत में ईरान उनके सामने कहीं नहीं ठहरेगा।

    ईरान के पास परमाणु बम है, ऐसा पक्के तौर पर कोई नहीं कह रहा...

  • तेजी से विकास में नाम महानगरों का नहीं, छोटे शहरों का!

    संपादकीय

    भारत के तीन शहर दुनिया में सबसे तेजी से विकास कर रहे शहरों की टॉप-10 लिस्ट में शामिल हैं। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि ये शहर दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे महानगर नहीं बल्कि केरल के बेहद छोटे शहर हैं, जो चर्चा में भी बहुत कम आते हैं। ये छोटे शहर हैं मलप्पुरम, कोझिकोड और कोल्लम। ब्रिटिश मल्टिनैशनल मीडिया कंपनी ‘द इकोनॉमिस्ट ग्रुप’ से जुड़े ‘इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ (ईआईयू) के सर्वे के अनुसार तेजी से विकास करने वाले शहरों में मलप्पुरम दुनिया में पहले नंबर पर है। यहां 2015 से 2020 के बीच 44.1 फीसदी बदलाव आया। कोझिकोड...

  • इंटरनेट अभिव्यक्ति की आजादी का एक अंग!

    संपादकीय

    देश की सुप्रीम अदालत ने जिस तरह इंटरनेट को अभिव्यक्ति की आजादी का एक अंग ठहराया है, वह कई तरह से स्वागत योग्य है। इसलिए भी कि अब प्रशासन का मनमाने ढंग से हर मौके-बेमौके पर इंटरनेट सेवा को बाधित करने का अधिकार खत्म होगा और इसलिए भी कि इससे मूल अधिकारों को नई तकनीक या नए दौर की जरूरतों से जोड़कर देखने का चलन शुरू होगा। फैसला भले ही एक क्षेत्र विशेष के संदर्भ में हुआ हो, लेकिन इसका प्रभाव अखिल भारतीय होगा और लंबे समय तक याद किया जाएगा। खासकर यह संयुक्त राष्ट्र की उस सलाह के भी...

  • सीएए याचिकाएं: सरकार के सामने असमंजस

    संपादकीय

    नागरिकता संशोधन कानून पर सर्वोच्च न्यायालय सहित देश के कई उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को लेकर केन्द्र सरकार की चिंता जायज ही कही जाएगी कि एक साथ कई जगह मामला चलने से आने वाले फैसलों में अंतर्विरोध हो सकता है। इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार ने प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ के सामने यह याचिका पेश की है कि इन सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में एक साथ हो। केन्द्र का यह कानून कई स्तरों पर समाज को मथ रहा है। इतने दिन बीत जाने के बाद भी न तो इसका विरोध करने वालों...

  • शिक्षा संस्थानों में बढ़ी हुई फीस पर बवाल!

    संपादकीय

    जेएनयू का विवाद बढ़ी हुई फीस को लेकर ही शुरू हुआ था, जो हाल ही उसके कैंपस में हिंसक झड़पों के साथ और भी उग्र हो गया है। पिछले कुछ समय से पूरे देश में कई विश्वविद्यालयों के छात्र फीसवृद्धि को लेकर उत्तेजित हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान तक से इसी प्रकार के विरोध-प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं। शासक वर्ग की ओर से इसके प्रति या तो उदासीनता दिखाई जा रही है या फिर इसे राजनीतिक रंग देकर खारिज करने की कोशिश की जा रही है। विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं और न...

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