नया यातायात कानून तर्कसंगत है या नहीं ?

संपादकीय

देश में एक सितंबर को नया यातायात कानून लागू किया गया है। जिसमें भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस जुर्माने को लेकर बहस छिड़ी है कि यह तर्कसंगत है या नहीं। मगर सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या इस नियम को तर्कसंगत बनाती है। देश में तमाम तरह के जागरूकता अभियान और सख्ती के बाद भी हर साल सड़क हादसों में लोगों की मरने की तादाद बढ़ती जा रही है। वर्ष 2008 में जहां रोजाना मरने वालों की संख्या लगभग 300 थी वो अब बढ़कर 500 हो गई है।

दिनोंदिन बढ़ते वाहनों की संख्या भी इन हादसों के लिए एक तरह से जिम्मेदार है। एक दूसरा बड़ा कारण गलत ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग है। जिसके कारण हादसों पर दुघर्टनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से ये चीजें साफ भी हो रही हैं कि सड़क दुघर्टनाओं में जान गंवाने वालों की संख्या किसी भी तरह से कम नहीं हो रही है। सरकार जागरुकता के अभियान तो चला रही है मगर उसका नतीजा नहीं दिख रहा है।

वाहन चालक तमाम नियमों को दरकिनार करते हुए ओवर स्पीडिंग करते हैं और हादसे का शिकार होते हैं। सरकाकी आंकड़ो को देखें तो एक दशक के बाद भी अब तक सड़क हादसों में किसी तरह से कमी नहीं आई है। 2008 में जहां सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 1.20 लाख थी वो साल 2018 में बढ़कर 1.49 लाख तक पहुंच गई। मंत्रालय परिवहन के बेहतर साधनों के लिए सड़कों का चौड़ीकरण कर रहा है और एक्सप्रेस वे का निर्माण कर रहा है। इन पर वाहनों की स्पीड की लिमिट निर्धारित है मगर नवयुवक इन रास्तों पर पहुंचने के बाद नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाते नजर आ जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक रात में और कोहरे के कारण अधिकतर हादसे होते हैं। बड़े शहरों में रैश ड्राइविंग के कारण अधिक सड़क हादसे होते हैं।

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